class 12 physics important Question
संक्षारण को रोकने की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए। (UPBTE 2007)
संक्षारण को रोकने की विभिन्न विधियाँ निम्न प्रकार
1- सही डिजाइन तैयार करके By Preparing Proper Design
मुख्य डिजाइन सिद्धान्त निम्नलिखित हैं
(i) संक्षारण करने वाले विलयन की उपस्थिति में असमान धातुओं का सम्पर्क नहीं होना चाहिये।
(ii) जब दो असमान धातुएँ सम्पर्क में हों तो ऐनोडीय पदार्थ का क्षेत्र जितना अधिक सम्भव हो, होना चाहिये।
(iii) जय दो असमान धातुएँ सम्पर्क के लिये प्रयोग करनी हों तो वे वैद्युत-रासायनिक श्रेणी में परस्पर इतनी समीप हों जितनी कि हो सकें।
(iv) ऐनोडीय धातु पर पेन्ट या लेपन नहीं करना चाहिये।
(v) जुड़ने वाले भागों में कोई छेद या दरार न हों ताकि कोई ठोस पदार्थ संगृहीत न हों।
(vi) नोकदार कोने न हों जिससे ठोस कण जमा न हो सकें।
(vii) कील आदि उपयोग में न लायी जायें; क्योंकि इनसे दरार पड़ने की सम्भावना बढ़ जाती है। अत: जोड़ वेल्ड किये हुए होने चाहिए।
(viii) संयन्त्रों पर पम्प तथा पाइप आदि इस ढंग से लगाये जाएँ जिससे जल का प्रवाह सरलतापूर्वक हो सके।
2- शुद्ध धातु प्रयोग करके Using Pure Metal
धातु में उपस्थित अशुद्धियों से विषमांगता हो जाती है, फलत: धातु का संक्षारण प्रति प्रतिरोध कम हो जाता है। अतः संक्षारण रोकने हेतु शुद्ध धातु प्रयोग करनी चाहिये।
3- धातु का मिश्रधातु प्रयोग करके Using Metal Alloys
अधिकांश धातुओं का संरक्षण के प्रति प्रतिरोध इनकी मिश्रधातु बनाकर बढ़ाया जाता है। अधिकतम संक्षारण प्रतिरोध के लिये मिश्रधातु पूर्णतया समांगी (homogeneous) होनी चाहिये। आयरन या स्टील के लिये क्रोमियम सबसे उपयुक्त मिश्रधातु बनाने वाली धातु है। वह स्टील जिसमें 13% तक क्रोमियम होता है, रसोई का सामान, चीर-फाड़ के औजार तथा स्प्रिंग आदि बनाने में काम आती है। लोहे के इस मिश्रधातु को जिसमें 13 से 25%क्रोमियम होता है, फेराइट स्टेनलेस स्टील कहते हैं।
4- निरोधक प्रयोग करके Use of Inhibitors
वह पदार्थ जो जलीय संक्षारी पर्यावरण में अल्प मात्रा में मिलाने पर धातु का संक्षारण कम कर देता है, निरोधक कहलाता है। निरोधक पदार्थ धातु की सतह पर अपशोषित होकर एक रक्षक परत बना देता है जिससे संक्षारण की गति कम हो जाती है। उदाहरणार्थ-संक्रमण तत्त्वों के फॉस्फेट्स तथा क्रोमेट्स आदि ऐनोडीय निरोधक का कार्य करते हैं।
5- कैथोडीय बचाव Cathodic Protection
इस विधि का यह सिद्धान्त है कि संक्षारण से बचायी जाने वाली धातु को कैथोड के रूप में कार्य कराया जाएँ जहाँ संक्षारण नहीं होता। कैथोडीय बचाव की एक विधि में बचायी जाने वाली धातु को एक अधिक ऐनोडीय धातु के साथ तार द्वारा जोड़ते हैं जिससे अधिक सक्रिय धातु धीरे-धीरे संक्षारित होने लगे और मूल धातु का संक्षारण से बचाव हो जाए। यह विधि ऐनोडीय बचाव विधि (sacrificial anodic protection method) कहलाती है। अधिक सक्रिय धातु को बलिदानी ऐनोड (sacrificial anode) कहते हैं। प्राय: मैग्नीशियम, ऐलुमिनियम तथा जिंक आदि धातुएँ और उनकी मिश्रधातु बलिदानी ऐनोड के रूप में उपयोग में लाये जाते हैं।
6- संक्षारण पर्यावरण को सुधार करके Modifying the Corrosion Environment
पर्यावरण की संक्षारक प्रकृति को कम करने के लिये हानिकारक अवयवों को पृथक् करते हैं या संक्षारक अवयवों के प्रभाव को उदासीन करने के लिये कुछ विशिष्ट पदार्थ मिलाते हैं।
(i) विवायुकरण Deaeration – जल में घुली हुई ऑक्सीजन को तापक्रम नियन्त्रित करके तथा यान्त्रिक हिलाव (mechanical agitation) द्वारा पृथक् कर देते हैं। इस प्रकार जल में से CO., भी कम हो जाती है।
(ii) निष्क्रियन Deactivation – जलीय विलयन में रासायनिक पदार्थ मिलाकर ऑक्सीजन को निष्क्रिय किया जा सकता है, उदाहरणार्थ-सोडियम सल्फाइट, Na2SO तथा हाइड्रेजीन हाइड्रेट, NH2 • NH2 – H2O ऑक्सीजन के साथ क्रिया कर इसे निष्क्रिय कर देते हैं।
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7- रक्षी लेपन का अनुप्रयोग Application of Protective Coating
किसी धातु पर अन्य धातु का लेप करने से मूल धातु को संरक्षण से बचाया जा सकता है। धातुओं का संक्षारण से बचाव करने के लिये निम्न धातु लेपन विधियाँ काम में लायी जाती हैं।
(i) धातु फुहरन Metal Spraying – इस विधि में लेपन की जाने वाली धातु की सतह पर किसी संक्षारित न होने वाली धातु को द्रव अवस्था में एक पिचकारी (spray gun) की सहायता से फुहार के रूप में डालते हैं। इस प्रकार मूल धातु पर लेपित धातु की एक हल्की परत जम जाती है जो मूलधातु का संक्षारण से बचाव करती है। सफल लेपन हेतु धातु की सतह भली-भाँति साफ की जानी चाहिये। इस विधि में परत की मोटाई को आसानी से नियन्त्रित किया जा सकता है। इस विधि द्वारा Cu, Al, Zn, Pb तथा Sn आदि का लेपन सफलातापूर्वक किया जा सकता है।
(ii) द्रव धातु में डुबाने की विधि Immersion Method – इस विधि में धातु की सतह को साफ करके लेप करने वाली द्रवित धातु में डुबाकर निकालते हैं। इस कार मूल धातु पर लेपित धातु की परत चढ़कर धातु को संक्षारण से बचाया जाता है। इसमें लेप की जाने वाली धातु का गलनांक मूल धातु से कम होना चाहिये। लेप मुख्यतः जिंक, टिन तथा लैड आदि धातुएँ प्रयुक्त की जाती हैं। इस विधि द्वारा लोहे पर जिंक का लेपन किया जाए तो इसे जस्त चढ़ाना (galvanisation) कहते हैं। किसी धातु पर टिन का लेपन किया दाए तो इो टिनिंग (tinning) कहते हैं। लोहे की चादरों पर प्राय: रिनिंग ही किया जा सर्वोपयुक्त होता है।
(iii) जस्त ताप लेपन या शेरार्डीकरण Sherardizing – लोहे तथा स्टील के उपकरणों तथा छोटे-छोटे बर्तनों पर ताप द्वारा जस्त चढ़ाने की प्रक्रिया को जस्त ताप लेपन कहते हैं। जिस वस्तु का लेपन करना होता है, उसे एक ऐसे वायुरोधी बक्से में रखते हैं जिसमें जिंक चूर्ण (zinc dust) भरा होता है। इसे एक घण्टे तक 350° से 400°C पर गर्म करने पर जस्त ताप लेपन पूर्ण हो जाता है।
(iv) एल्युमिनियम ताप लेपन या कलरीकरण Colourisation – आयरन तथा स्टील की वस्तुओं पर एल्युमिनियम का लेपन करने की विधि को एल्युमिनियम ताप लेपन कहते हैं। यह प्रक्रम शेरार्डीकरण की भाँति ही होता है। इसमें लेपन की जाने वाली वस्तु ऐसे वायुरोधी बक्से में बन्द करके गर्म करते हैं जिसमें पहले से ही ऐलुमिनियम चूर्ण तथा ऐलुमिनियम ऑक्साइड भरा होता है। इस प्रकार धातु पर बनने वाली Al की परत जिंक की अपेक्षा कठोर तथा संक्षारण प्रतिरोधक होती है।
(v) विद्युत लेपन Electroplating – किसी धातु पर विद्युत द्वारा एक अन्य धातु के चढ़ाने के प्रक्रम को विद्युत लेपन कहते हैं। विद्युत लेपन करने के निम्न दो मुख्य उद्देश्य होते हैं
(a) धातु को सुरक्षित रखना
(b) वस्तु को सजावट करना।
इस विधि के द्वारा लोहे को जंग से बचाने तथा स्टील (इस्पात) की वस्तु को संक्षारण से बचाने हेतु इन पर निकेल, क्रोमियम तथा जिंक आदि की परत चढ़ायी जाती है। इसी प्रकार पीतल के बर्तनों पर निकेल या चाँदी द्वारा कलई की जाती है। चाँदी के जेवरों को सुन्दर बनाने के लिये इन पर सोने की अत्यन्त पतली परत चढ़ायी जाती है। यह विधि उच्च गलनांक वाली धातुओं के विद्युत लेपन हेतु प्रयुक्त की जाती है। (CN)2
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विधि Procedure:
जिस वस्तु का विद्युत लेपन करना होता है, उसे भली-भाँति साफ करते हैं। इस स्वच्छ वस्तु को विद्युत लेपन पात्र में कैथोड बनाते हैं। जिस धातु का लेप करना होता है, उसे ऐनोड बनाते हैं। पात्र में ऐनोड धातु के विलेय लवण का विलयन भरते हैं। यह विलयन विद्युत का सुचालक होना चाहिये। इसका ऑक्सीकरण, अपचयन तथा जल अपघटन भी नहीं होना चाहिये। उदाहरणार्थ-चाँदी की वस्तु (कैथोड) पर चाँदी ऐनोड से पोटैशियम अर्जेन्टोसायनाइड विलयन में विद्युत प्रवाहित करके चाँदी का लेपन कर सकते हैं।
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